Thursday, August 24, 2017
Monday, July 31, 2017
मेरी कहानियां
मै और मेरा एक दोस्त एक ही स्कूल में साथ-साथ पढ़ते थे। दोस्त बड़े होकर ऑफिसर हो गए और अपने बचपन के संगी-साथियों को भूल-से गए। मगर मुझे को मित्रता याद थी। एक बार मुझे दोस्त के सहयोग की आवश्यकता पड़ी। तो मै दोस्त से मिलने गया । ऑफिस में पहुंचकर मैंने दोस्त को सखा कहकर संबोधित किया। पर दोस्त ने ध्यान नहीं दिया। मुझे लगा कि दोस्त को शायद स्मरण नहीं आ रहा। मैंने अपना परिचय और स्कूल का संदर्भ याद कराया और फिर ′मित्र′ कहा। इस बार दोस्त अपने सहपाठी को पहचाना जरूर, पर तिरस्कार के साथ। कहा, जो ऑफिसर नहीं, वह सखा नहीं हो सकता। बचपन की बातों का बड़े होने पर कोई मतलब नहीं होता। उनका स्मरण कराके आप मेरे सखा बनने की चेष्टा कर रहे हैं। और सिफारिश चाहते हैं. मुझे इस तिरस्कार से बड़ा दुख हुआ। और इसका बदला लेने का निश्चय किया। मैंने घर जाकर अन्यों के साथ मिलकर नई रणनीति बनाकर और नई पीढ़ी के बालकों को तर्क अर्थ और अस्त्र विद्या सिखाने लगा जब शिक्षा पूरी हो गई और मेरे साथी बालक और दोस्तों ने मेरे से कुछ मांगने की प्रार्थना की, तो मैंने कहा, मुझे मौसम के बदल जाने पर दोस्त का बदलना बर्दास्त नहीं इसलिए मुझे धन-धान्य और परितोष नहीं चाहिए। अगर कुछ देना चाहते हो, तो मेरे दोस्त को जीतकर, उन्हें बांधकर मेरे सामने उपस्थित करो। तुम सभी और युवा आगे भी यही करना ताकि दोस्ती और पहचान के कोई धब्बे दुनिया में न रहें जैसा की मेरे दोस्त ने किया। और हुआ भी कुछ ऐसा की दोस्त को बांधकर मेरे के सामने लेकर मेरे शिष्य लाकर उपस्थित कर दिये । लेकिन बात यहीं नहीं थमी, क्योकि द्वेष का कुचक्र टूटता नहीं। दोस्त के मन में मेरे के लिए प्रतिशोध की भावना बनी रही। उन्होंने मंत्री या किसी बड़े ऑफिसर को प्रसन्न करके सिफारिशी वरदान के रूप में ऐसा मन्त्र मांग लिया, जो मुझे मार सके। उन्होंने उस मन्त्र का नाम सिफारिस और अर्थ रखा।बाद में यही अर्थ और सिफारिश उनको जेल में ले गयी और वहां उन्हें कैंसर और भी कई रोगों ने घेर लिया परन्तु मै एक बार पुन: दोस्त को मिलने गया पर तब तक देर हो चुकी थी और उसने मुझे भी पहचान लिया था इसलिए भगवान या उस सर्वब्यापी से जरुर डरना उसके लिए कोई भी अधिकारी या सामान्य कर्मचारी नहीं बल्कि एक आम इंसान होता है!
Sunday, July 30, 2017
Saturday, May 20, 2017
Sunday, April 23, 2017
Campaign to Bring Dropouts and Underprivileged Kids to School
Schools often provide students with few choices and a small amount of freedom. The classes they must take are dictated by outsiders, the amount of time they must spend in class isn’t determined by how well they do in class, and their ability to move either slower or faster through the subject material might be curtailed by the pace set by other students in the class. Sometimes, students become so discouraged by the stifling nature of their schools that they simply choose to leave the promise of a good education behind them. If these students do choose to drop out, alternative schools may provide the help that can get them back on track
Saturday, April 8, 2017
Monday, April 3, 2017
Sunday, April 2, 2017
Saturday, April 1, 2017
Friday, March 31, 2017
Wednesday, March 29, 2017
SWACHHATA MISSION IN THE SCHOOL AND ITS SURROUNDINGS
The campaign was officially launched on 2 October 2014 at Rajghat, New Delhi, by Prime Minister Narendra Modi. It is India's largest ever cleanliness drive with 3 million government employees, and especially school and college students from all parts of India, participating in the campaign. The objectives of Swachh Bharat are to reduce or eliminate open defecation through construction of individual, cluster and community toilets. The Swachh Bharat mission will also make an initiative of establishing an accountable mechanism of monitoring latrine use.
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